पति घर बैठकर नहीं खा सकता पत्नी की कमाई पर ये पत्नी पर लागू क्यो नही? जाने पति और पत्नी के हक ( Husband cannot eat wife's earnings sitting at home, it is mental cruelty )

पति और पत्नी


पत्नी की कमाई पति घर बैठकर नहीं खा सकता क्योंकि ये मानसिक क्रूरता है पर ये नियम पत्नी के लिए क्यो लागू नहीं जाने

हम आपको बता दे कुछ दिन पहले ही कर्नाटक हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले पर सख्त टिप्पणी की थी और कहा- पति अगर पत्नी के साथ 'कामधेनु गाय' (Cash Cow) की तरह व्यवहार करता है तो ये मानसिक क्रूरता के अंतर्गत आता है। मतलब साफ है कि पुरुष घर बैठकर अपनी पत्नी की कमाई बिल्कुल नहीं खा सकता। उसे पैसे कमाने का सिर्फ जरिया नहीं बना सकता है। ओर कोर्ट ने इस मामले में तलाक को मंजूरी दे दी है।

अब जानिए इस केस का मामला क्या था -

साल 1999 में दोनो की शादी हुईं थी ओर 2001 में एक बच्चा हुआ और 2017 में तलाक की याचिका दायर की गई, जिसमें यह कहा गया कि पति का परिवार आर्थिक संकट में था। लड़ाई-झगड़े और कर्ज चुकाने की वजह से पत्नी ने दुबई में नौकरी कर ली। उसने पति के नाम पर खेत खरीदा और 2012 में एक सैलून भी खुलवा दिया था, लेकिन पति ने खुद को फाइनेंशियली मजबूत नहीं किया। 2013 में परिवार भारत वापस लौट आया। महिला ने लगभग 60 लाख रुपए अपने पति को दिए थे, जिसकी बैंकिंग डिटेल कोर्ट में पेश की थी।

दूसरा एक मामला दिल्ली से देखने में आया था 

ऐसा ही एक मामला साल 2021 में सामने आया था, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट ने भी कहा था कि पति अपनी पत्नी को कामधेनु गाय समझता है। जब पत्नी की नौकरी दिल्ली पुलिस में लगी तब पति की दिलचस्पी अपनी पत्नी के साथ रहने में बढ़ी। 

जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह की पीठ ने कहा था कि पति का पत्नी से कोई इमोशनल रिलेशन नहीं था। नौकरी की वजह से वो साथ रहना चाहता था। ऐसे में पत्नी को मानसिक पीड़ा हुई होगी। जो उसके साथ क्रूरता दिखाने के लिए पर्याप्त है।


अब ये जानना बहुत जरूरी है कि मानसिक क्रूरता किसे कहते है -

इन बातो के आधार पर क्रूरता निर्धारित की जाती है - 
  • अगर पति या पत्नी एकतरफा शारीरिक संबंध ना रखने का फैसला ले।
  • अगर किसी एक ने एकतरफा फेसला ले लिया की शादी के बाद बच्चा नही चहिए तब।
  • एक दूसरे को बिना बताए किसी एक का स्टरलाइजेशन होना।
  • पत्नी की कमाई बैठकर खाना उसे सिर्फ आमदनी का जरिया समझना।
  • दोनों के बीच इतना तनाव हो की साथ ना रह पा रहे हो।
  • लगातार एक दूसरे को छोटा दिखाना या किसी बात का बार बार आरोप लगाना।
  • अपनी खुशी के लिए एक दुसरे परेशान करना मानसिक तनाव देना।


पति और पत्नी


अब कई लोगों के मन में सवाल उठ रहा होगा कि पति घर बैठकर पत्नी की कमाई खाए तो मानसिक क्रूरता हुई तो फिर पत्नी घर बैठकर पति की कमाई कैसे खा सकती है?

दरअसल पति को Primary source of earning माना गया है, जबकि पत्नी को Secondary source of earning माना गया है। यानी पत्नी का नौकरी करना जरूरी नहीं है, क्योंकि वो उसके बदले में बच्चे पालती है, घर की देखभाल करती है, खाना बनाती है, सास-ससुर की देखभाल करती है और बाकी काम भी करती है। अगर पति घर में ये सब काम भी नहीं कर रहा है और सिर्फ पत्नी की कमाई बैठकर खा रहा है, तो वो मानसिक क्रूरता ही है।

अब बात आती है की अगर कोई पुरुष हाउस हसबैंड है यानी घरेलू महिला की तरह घर के सारे काम कर रहा है और उसकी पत्नी नौकरी करती है तो क्या वो भी मानसिक क्रूरता के दायरे में आ सकता है?

हम आपको बता दे नहीं, जिस तरह पत्नी घर का ख्याल रखती है। वैसे ही अगर हाउस हसबैंड भी घर का ख्याल रखता है और कभी कोर्ट केस होने पर वो प्रूफ कर पाता है कि नौकरी नहीं करने के बदले उन्होंने घर को अच्छी तरह से संभाला है। तब ऐसे पति को मानसिक क्रूरता के दायरे में नहीं लाया जा सकता है।

क्या मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक लिया जा सकता है, तो इसका जवाब है हां, बिल्कुल।

ऐसी सिचुएशन में दोनों में से कोई एक पार्टनर contested divorce (विवादित तलाक) की मांग कर सकता है। इसे एकतरफा तलाक भी कहते हैं। 

इन 8 बातो के आधार पर पति या पत्नी एकतरफा तलाक की मांग कर सकते है - 

  1. अगर पति या पत्नी एक दूसरे को धोका देखकर किसी तीसरे से संबंध रखे।
  2. अगर पति या पत्नी कोई एक शारीरिक हिंसा का दोषी हो।
  3. अगर किसी एक ने दूसरे के साथ मानसिक क्रूरता वाला व्यवहार किया हो।
  4. अगर पति या पत्नी 7 साल से गायब है और दूसरे को नहीं पता तब।
  5. पति या पत्नी किसी एक को शारीरिक दोष हो जैसे कुष्ट रोग एचआईवी एड्स आदि।
  6. पति या पत्नी 2 साल से अलग रह रहे हो।
  7. अगर पति या पत्नी में से किसी ने संन्यास ले लिया कर।
  8. पति या पत्नी किसी एक को धर्म परिवर्तन के लिए फोर्स किया जा रहा हो।


अगर किसी एक पार्टनर को एकतरफा तलाक लेना है तो उसके लिए क्या करना होगा?

हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13 में contested divorce यानी एकतरफा तलाक को लेकर साफ तौर पर लिखा गया है की -

  • सबसे पहले एक एप्लिकेशन फैमिली कोर्ट या सेशन कोर्ट में लगानी होगी। आपके शहर में फैमिली कोर्ट नहीं है तो सेशन कोर्ट में एप्लिकेशन लगाएं।
  • एप्लिकेशन लगाने के बाद दूसरे पक्ष के पास कोर्ट की तरफ से नोटिस जाएगा।
  • कोर्ट में पेश होने के लिए तारीख दी जाएगी। उस तय तारीख पर सुनवाई होगी।
  • पहले नोटिस के बाद अगर दूसरा पक्ष नहीं पहुंचता है तो सेकेंड नोटिस जाएगा।
  • इसके बाद भी अगर दूसरे पक्ष की पेशी नहीं होती है तो थर्ड नोटिस जाएगा।
  • थर्ड नोटिस के बाद भी अगर वो नहीं आता है तो एक पक्ष की ही बात सुनी जाएगी।
  • उसके बाद कोर्ट फैसला करेगी कि तलाक को मंजूरी देनी है या नहीं।
  • वहीं अगर दूसरे पक्ष की पेशी होती है तो पहले सुलह की कोशिश की जाएगी।
  • सुलह में कुछ महीने लग सकते हैं, सुलह नहीं होने पर कोर्ट फैसला सुना देगी।


ओर अगर एक पार्टनर तलाक चाहता है और दूसरा कोर्ट में पेश होने के बाद कह दे कि उसे तलाक नहीं चाहिए तब दोनों पार्टनर की मैरिज काउंसलिंग होगी। यानी उनके रिश्ते को बचाने की कोशिश की जाएगी। यह मैरिड कपल पर की जाने वाली एक तरह की साइकोथेरेपी है। इसके जरिए एक्सपर्ट्स उनके रिश्तों में आने वाली समस्याओं को दूर करने की कोशिश करते हैं।

अब सवाल उठता है की क्या कांउसलर के फैसले के आधार पर कोर्ट अपना फैसला सुनाता है? तो जवाब है नहीं, काउंसलिंग के बाद कोर्ट और पुलिस को काउंसलर अपनी राय दे सकता है। इस रिपोर्ट के आधार पर फैसला सुनाने के लिए जज मजबूर नहीं होता है। जज दोनों पार्टी की राय सुनने और सबूत देखने के बाद ही अपना फैसला सुनाता है। 


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