महारानी अहिल्याबाई होलकर
मराठा साम्राज्य की सबसे प्रसिद्ध महारानी अहिल्याबाई होलकर थी। इन्हे राजमाता के रूप में भी जाना जाता है तथा इतिहास के प्रसिद्ध सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खण्डेराव की धर्मपत्नी थीं। उन्होने माहेश्वर को राजधानी बनाकर शासन किया था।
अहिल्याबाई होलकर का जन्म
अहिल्याबाई होल्कर का जन्म वर्ष 31 मई 1725 को चौंढी नामक गांव में हुआ था जो आज महाराष्ट्र राज्य के जामखेड़ा, अहमदनगर में हैं।
वह एक सामान्य किसान की पुत्री थी। उनके पिता मान्कोजी शिन्दे ओर माता सुशीला शिन्दे थी। सादगी और घनिष्ठता के साथ जीवन व्यतीत करने वाले मनकोजी की अहिल्याबाई एकमात्र पुत्री थी। अहिल्याबाई बचपन के समय में सीधी साधी और सरल ग्रामीण कन्या थी। अहिल्याबाई होल्कर भगवान में विश्वास बहुत रखती थी शिव भगवान की प्रतिदिन पूजा पाठ करती थी।
अहिल्याबाई होलकर का विवाह
अहिल्याबाई बचपन में बहुत चंचल और समझदार थी। उनका लोगो के प्रति प्रेम और दयाभाव देख के ही राजा मल्हार राव होलकर ने अहिल्याबाई का विवाह अपने पुत्र खांडेराव होलकर से करा था। एक बार की बात है राजा मल्हार राव होल्कर पुणे जा रहे थे तब उन्होंने चौंढी गाँव में विश्राम किया था उसी समय उन्होंने अहिल्याबाई को देखा था वो गरीबों की मदद कर रही थी। उनका प्रेम और दयाभाव देखकर मल्हार राव होल्कर ने उनके पिता मान्कोजी से अपने बेटे खण्डेराव होलकर के लिए अहिल्याबाई का हाथ मांगा था।
महज आठ साल की उम्र में ही उनका विवाह (1733) मल्हार राव खांडेकर के बेटे खांडेराव होलकर से कर दिया गया था।
अहिल्याबाई होलकर की 2 संतान थी एक पुत्र मालेराव ओर एक पुत्री मुक्ताबाई। अहिल्याबाई हमेशा अपने पति को राज कार्य में साथ दिया करती थी।
( सन 1745 में उन्हें बेटा हुआ मालेराव होल्कर और 1748 में उन्हें बेटी हुई मुक्ताबाई। )
अहिल्याबाई होलकर ने खुद के पुत्र को मृत्युदंड क्यों दिया?
अहिल्या बाई को न्याय की देवी कहा जाता था. एक बार की घटना का जिक्र उन्हें लेकर बहुत प्रचलित है. इसके अनुसार अहिल्याबाई के बेटे मालोजी राव एक बार अपने रथ से सवार होकर राजबाड़ा के पास से गुजर रहे थे. तभी रास्ते में एक गाय का छोटा-सा बछड़ा खेल रहा था. लेकिन जैसे ही मालोराव का रथ वहां से गुजरा वो बछड़ा कूदता-फांदता रथ की चपेट में आकर बुरी तरह घायल हो गया और तड़प-तड़प कर बछड़ा मर गया गाय वहा से थोड़ी दूर थी फिर बछड़े की मां बछड़े के पास आ कर बैठ गई।
मलेराव ने ध्यान नहीं दिया और आगे चले गए। तब कुछ देर बाद अहिल्याबाइ का रथ वहा से गुजरा रानी ने जब देखा तो उन्होंने वहा के लोगो से पूछा ये पाप किसने किया पर किसी में हिम्मत नही हुई की वो बता सके की उनके पुत्र ने ही ये पाप किया फिर किसी ने हिम्मत करके बताया कि इस बछड़े को मालोराव के रथ ने कुचला। क्रोधित अहिल्याबाई ने सभा बुलाई और अपनी बहु से पूछा की कोई इंसान एक माता के सामने उसके पुत्र को कुचल कर चले जाए तो ऐसे इंसान के साथ क्या करना चाहिए
उनके इस सवाल पर उनकी बहू मेनाबाई ने कहा कि ऐसे आदमी को मृत्युदंड देना चाहिए. बहू की बात सुनकर वो काफी देर सोचती रहीं फिर सभा में आदेश दिया कि उनके बेटे मालोजीराव के हाथ-पैर बांध दिए जाएं और उन्हें ठीक वैसे ही रथ से कुचलकर मृत्यु दंड दिया जाए, जैसे गाय के बछड़े की मौत हुई थी, ये सुन के सब खड़े होकर हैरान हो गए और बोलने लगे ये कैसा न्याय है तब अहिल्याबाई ने कहा उनके लिए सब बराबर है उनके आदेश का पालन किया जाए।
उनके इस आदेश को पूरा करने की हिम्मत किसी में भी हुई फिर कुछ देर बाद अहिल्याबाई खुद उठी और रथ पर सवार होकर पुत्र को मृत्युदंड का फैसला पूरा करने निकली जैसे ही रथ मालेरव को कुचलता वो गाय बीच में खड़ी हो जाती गाय को हटाने पर वो बार बार बीच में आ जाती तब मंत्रियों ने अहिल्याबाई से कहा की गाय नही चाहती एक मां के हाथ पुत्र की हत्या हो वो इस पाप को रोक रही हैं तब मालेराव ने अहिल्याबाई से कहा की वो कभी ऐसा पाप नही करेगा।
पति खांडेराव की मृत्यु के बाद अहिल्या बाई का जीवन
सन 1754 में अहिल्याबाई के जीवन में अंधेरा छा गया था जब एक युद्ध के दौरान पति खंडेराव वीरगति को प्राप्त हो गए। यह खबर सुनते ही अहिल्याबाई सती हो जाना चाहती थी। लेकिन अहिल्याबाई को उनके ससुर ने रोका और मानसिक तौर पर उन्हें मजबूत किया। वह हर विपरित परिस्थिति में अहिल्याबाई के साथ खड़ें होते थे। फिर जब बयालीस-तैंतालीस वर्ष की थीं, पुत्र मालेराव का देहान्त हो गया। जब अहिल्याबाई की आयु बासठ वर्ष के लगभग थी, दौहित्र नत्थू चल बसा। चार वर्ष पीछे दामाद यशवन्तराव फणसे न रहा और इनकी पुत्री मुक्ताबाई सती हो गई।
आगे जा कर मल्हार राव का भी निधन हो गया। पूरा भार अहिल्याबाई पर आ गया था। लेकिन अहिल्याबाई ने इस भार को भार नहीं बनने दिया और मालवा के शासन की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली और पूरी ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाया।
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